उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना पर उठे सवाल: बरमकेला तहसीलदार पर कार्रवाई की मांग

सारंगढ़ । न्यायालय का कार्य है कि वह नागरिकों को न्याय प्रदान करे, लेकिन जब न्यायालय के आदेश की अवमानना होती है, तो सवाल उठता है कि न्याय मिलने की प्रक्रिया में क्या यह विघ्न नहीं है? खासकर तब जब उच्च न्यायालय के आदेशों को तहसील कार्यालय द्वारा दरकिनार किया जाए, तो क्या किया जाए? यही सवाल पीड़ित परिवारों के सामने आज खड़ा हो गया है।
पूरा मामला:
यह मामला बरमकेला तहसील से जुड़ा हुआ है, जहां उच्च न्यायालय में एक विवादास्पद खेत पर लंबित प्रकरण के बावजूद, तहसीलदार शनि पैकरा ने उस खेत पर धान बिक्री की अनुमति दे दी है। अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि तहसीलदार के आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि यदि किसी न्यायालय में प्रकरण चल रहा हो, तो यह आदेश स्वमेव निरस्त हो जाएगा।
जब पीड़ित परिवार ने बरमकेला तहसीलदार से इस मुद्दे पर जानकारी ली, तो तहसीलदार ने कोई स्पष्ट बयान देने से इनकार कर दिया। इससे परिवार में संदेह उत्पन्न हो गया है कि कहीं तहसीलदार की कार्यप्रणाली में मिलीभगत तो नहीं हो रही है।
न्यायालय के आदेश की अवमानना:
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब पीड़ित परिवार ने खाता विभाजन के लिए आवेदन किया था, तो तहसील कार्यालय ने उच्च न्यायालय में लंबित प्रकरण का हवाला देकर आवेदन खारिज कर दिया था। फिर कैसे उसी खेत पर धान बिक्री की अनुमति दी गई? इस सवाल का जवाब अब तहसीलदार और संबंधित अधिकारियों से मांगा जा रहा है।
एसडीएम की जांच:
सारंगढ़ एसडीएम, प्रखर चंद्राकर ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच की बात कही है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि तहसीलदार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना करते हुए आदेश जारी करना गंभीर मुद्दा है। एसडीएम ने कहा कि यह जांच पर ही पता चलेगा कि तहसीलदार ने आदेश क्यों जारी किया और क्या यह न्यायालय के आदेश के खिलाफ था।
किसान सीताराम का मामला:
यह मामला एक किसान, सीताराम द्वारा अपनी भूमि पर धान की फसल की बिक्री से भी जुड़ा हुआ है। किसान ने यह भूमि पूरी तरह से अपने कब्जे में कास्त की थी, लेकिन न्यायालय में लंबित मामले और विवाद के कारण उस भूमि पर धान बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। तहसीलदार के आदेश में यह बताया गया कि इस भूमि के कुछ हिस्से पर धान खरीदी की अनुमति दी जाती है, जबकि बाकी हिस्सों पर रोक लगाई गई है।
आखिरकार, यह सवाल उठता है कि क्या उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी, और क्या पीड़ित परिवार को न्याय मिल सकेगा? इस मुद्दे पर अब एसडीएम और उच्च न्यायालय से न्याय की उम्मीद है।